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सुखाड़ / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

हवा सांय सांय बहल रेह खेह धरती हे
परहे साल से तो जमीन सब परती हे
काम सब अगाड़ी के होल अब पिछाड़ी हे
बेटी बिआह के रुकल अभी गाड़ी हे
सुरूज आसमान के आबा सन लहकल हे
सगर के धरती ई ताबासन टहकल हे
खेत खलिहान के घास-पात सुक्खल हे
ऐसन सुखाड़ में गाय गोरू भुक्खल हे
पुरबा धकियावे हे पछिया भरमावे हे
कनै से बूँद नेने बादर नै आवे हे
लुक लगल भागोही देररात जागोही
मने-मने इन्नर पर गोली भी दागोही
औरत सब पकड़ बेंग ऊखल में कूटे हे
तैयो आसमान से बरसा नय फूटे हे
धरती दरारल हे लोग सब गारल हे
परहे साल से तो सूखा के मारल हे
कुइयाँ तलाब नदी नाला सब सुक्खल हे
छोटका के घर में अनाज नय रक्खल हे
गाय गोरू चिरई चुरमुन्नी पियासल हे
बुतरू हकासल हे माय उद्वासल हे
हरियर सब धरती लग रहल अब मसान हे
कोयल के कंठ में बंद होल गान हे
धूप-घाम धूल-भरल दिन में सब रहल डरल
जप-तप पूजा कैलों तैयो नय बूँद पड़ल
छप्पर नै फेरल गेल, ताट नै घेरल गेल
बूँट गहुम मसुरी भी अबकी नै पैदा भेल
उजड़ल किसान कभी बड़-बड़ दाहड़ में
फँसल रहल नाव कभी बाँझ बनल राहड़ में
अबकी बार तो सुखाड़ बड़ी भारी हे
पानी ले कल पर बड़ी मारा मारी हे
धरती पर आग हे ई सुखाड़ नाग हे
सुखल सभे बाग हे, मुरदा पर काग हे
भरल पुरल देह छिजल पचकल हेऽ
देखलों तरबन्ना में ऐर लोग गचकल हेऽ
सुनलो पलामू मंे सोर सब उसरो हेऽ
मरते-मरते सब अजादी के बिसरो हेऽ
हवा बड़ी गरम हे, निकले में शरम हेऽ
फुॅट्टल ढोल हम फुॅट्टल हमर करम हेऽ
चोर बानर छूट रहल बड़का सब लूट रहल
पुन्न ले एकासी करो हमतो ही रोज सहल
गाय गोरू हड्डी है हाल हमर रद्दी हेऽ
डॉक्टर, ऑफिसर सब नेता बनल जद्दी हेऽ
मुँह फाड़ पच्छी सब बाहर में गिरल मरल
घर में बीमार माय बुतरू सब रहल पड़ल
पास में धेला नै कौड़ी नै पैसा हे
अबकी सुखाड़ ई पहाड़ याकि भैंसा हे
ऐसन में आग लगल, सब घरबार जरल
साफ होल करल-धरल मुरदा घर रहल पड़ल
बड़का सुखाड़ ई जम है कि काल हे
परहौं कुछ उपजल नय ऐसने ई साल हे