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सुखार / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

काल रहसल त्रास बहकल
मधुमासे संत्रास महकल
अषाढ़ कुपि‍त इन्द्र रूसल
जल बुन्न बि‍नु बि‍आ वि‍हुसल
आड़ि‍ चहकल खेत दड़कल
प्रशान्त‍क प्रकोपे मनसून सरकल
शोषि‍त कलकल जुआनी गरकल
रोहि‍णी-आरदरा सुखले रमकल
“ग्लो‍बल-वार्मिग” फनकल
क्षुब्धो प्रकृति‍ सनकल
वि‍ज्ञानक चमत्काररमे उच्छ्वा स छनकल
गाछ काटि‍ फोर लेन बनेलौं
पहि‍ने कि‍अए नै नवगछुली लगेलौं
अपने गति‍क स्टेरयरि‍ंग पकड़लौं
मजूर कि‍सानकेँ घर बैसेलौं
कृषि‍ प्रधान देशमे नोरक स्नालत
आँखि‍क शोणि‍तसँ केना भीजत पात?
ऐ बेर सुखाड़ साउनो बीतल
दीनक आत्माड तीतल
भदैया बूड़ल रब्बीाक कोन आश
सुक्ख ल मुरदैया मरूझल कास
अगि‍ला साल आओत बाढ़ि‍
देलौं खेति‍हरकेँ ताड़ि‍?
वाह रौ वि‍ज्ञान वाह रौ धनमान
बि‍नु हथि‍हारें लेलें गरीब-गुरवाक जान
जकर भऽ सकए संलयन आ वि‍घटन
आयुर्वेदमे तइ रसायनक चर्चा
वि‍ज्ञानक बाढ़ि‍मे सगरो पाॅलीथीन
कागत छोड़ि‍ वाॅटि‍ रहलौं प्लावस्टिर‍कक पर्चा
आजुक रसायनसँ माटि‍क कोखि‍ उजड़ल
ठुट्ठ डाॅट कि‍छु नै मजड़ल
प्लाठस्टि ‍क छोड़ि‍ लि‍अ जूटक बोरा
पाॅलीथीन नै ठोंगा-झोरा
छोड़ रौ धनचक्कर
एडभान्स बनबाक चक्कर
पकड़ेँ अपन बाप पुरुखाक देल हथि‍यार
धरे मौलि‍क संस्काेर
केमि‍कलसँ नहा तँ लेबें
मुदा! की चि‍बेबें?