सुणिये मेरे मिन्त कथा।
पंजे गाड़ दिये होणी ने हे होणी बलवान धंसी जा सरवण के घर में
आते ही डिगा दी बुध आण के उस तिरिया की पल में
कुमत्त राणी की बन आई।
सोना को टका दियो हाथ जाय कुम्हरा ते बतलाई
सुण प्रजापत बात समझले बरतन एक बणा दे ऐसा भीतर हो परदा
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
ले हंडिया प्रजापत आयो काम करी चितराई को
पंजे गाड़ दिये होनी ने दोष नहीं ईमे काई को
एक में रंधती खटी मेहेरी एक में रंधती खीर
करके सोच कहे यू अंधा या कैसी तकदीर
सकीमी सरवण में आई।
बहुत गए दिन बीत मेहेरी खट्टे की खाई
सरवण ने सुणो जवाब रही ना बाकी
सुण अंधे माई बाप दोजखी पापी
खीर तनें सब दिन ते खाई हुयो तूं अंधा दुखदाई
वाको थाल आप ले लीनो अपनो दियो पिता
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
एक ग्राम लियो मुख भीतर थाल पटक दियो धरती में
कुल में घात चला रही तिरिया तू ना चूकी करणी में
सुण तिरिया बदकार अक्ल की मारी
तूं एकली काग उड़ाये पड़ी रह लानत की मारी
ऐसे वचन कहे सरवण ने सरवण बन को जा
सुणिये मेरे मिन्त कथा।
हरे हरे बांस कटा के इसने कावड़ बनवाई
नंगे कर लिये पैर सुरत जने बन खंड की लाई
आ गयो सागर ताल नीर भर लीयो
दसरथ ने मार्यो बाण जुलम कर लीयो
सांस ना सरवण की भटकी बात तो बहुत जबर अटकी
भयानो दसरथ को आयो।
मेरी सुणिये दसरथ बात पिता रह गयो तिसायो
ले पाणी दसरथ आयो ठाकुर नाम सुता
सुणिये मेरे मिन्त कथा।