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सुण म्हारा इस्ट! (छव) / राजेन्द्र जोशी

म्हारा इस्ट
म्हैं ओळखूं थनै
पण मिनख नीं ओळखै
थूं ई नीं जाणै बां मिनखां नै
जिका रोवता रैवै दुखड़ो आपू-आपरो
बांरो दुख
हेत नीं बण सक्यो थारो
अर थारो दुख
बांरो सुख नीं बण सकै।

म्हारै खातर
थां दोनुवां रो दुख
प्रीत जिसो लखावै
थूं बांरा दुख
सुण नीं सकै
ना बां सूं मिळ सकै।

थूं पढ सकै
म्हारी कविता
सुख सूं।