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सुतंतुस / भवानीप्रसाद मिश्र

जैसे किसी ने
मन के बखिए
उघेड़ दिए
सब खुल गया
लगा मैं कुल का कुल
गया
भीतर
कुछ भी
बचा नहीं है
तब मैंने
यह
मानकर
कि भीतर मन के सिवा
और-और तत्व होंगे
उन तत्वों को टेरा
बाहर के जाने हुए
तत्वों का रूख़ भी
भीतर की तरफ़ फेरा
और अब
सब
रफ़ू किया जा रहा है
समूचा जीवन
नये सिरे से
जिया जा रहा है!