ठाडी पंडिताइन कहत मंजु भावन सों,
प्यारे परौं पाइन तिहारोई यह घरू है ।
आये चलि हरौं श्रम कीन्हों तुम भूरि दुःख,
दारिद गमायो यों हॅसत गह्यो करू है ।
रिद्धि सिद्धि दासी करि दीन्हीं अविनासी कृस्न,
पूरन प्रकासी , कामधेनु कोटि बरू है ।
चलो पति भूलो मति दीन्हों सुख जदुपति,
सम्पति सो लीजिये समेत सुरूतरू है ।।81।।
समझायो पुनि कन्त को, मुदित गई लै गेह ।
अन्हवायो तुरतहिं उबटि, सुचि सुगन्ध मलि देह ।।82।।
पूज्यो अधिक सनेह सों, सिंहासन बैठाय ।
सुचि सुगन्ध अम्बर रचे, बर भूसन पहिराय ।।83।।
सीतल जल अॅचवाइ कै, पानदान धरि पान ।
धर्यो आय आगे तुरत, छवि रवि प्रभा समान ।।84।।
झरहिं चौंर चहुँ ओर तें, रम्भादिक सब नारि ।
पतिव्रता अति प्रेम सों, ठाढी करै बयारि ।।85।।
स्वेत छत्र की छॉह, राज मैं शक्र समान ।
बहन गज रथ तुरंग वर, अरू अनेक सुभ यान ।।86।।
भाग-3 समाप्त