Last modified on 7 अगस्त 2010, at 01:26

सुधियाँ साथ निभाएँगी / हरीश भादानी

सुधियाँ साथ निभाएँगी

    थकी अगर
   रुकी जाएँगी,
दूरी भर-भर आएँगी,
मुझको छोड़ न पाएँगी
तुम न भले ही साथ चलो
सुधियाँ साथ निभाएँगी
        थकी अगर...

    पीड़ा ओढ़े
    धूप हमारे साथ में
    और दुःखों के हाथ
    हमारे हाथ में
आकर्षण दिखलाएँगी
मृगतृष्णा बन जाएँगी
और सरकती जाएँगी
    तुम न भले ही साथ चलो
सुधियाँ साथ निभाएँगी
        थकी अगर...

    मेरा उस
    सुर्खी के पार पड़ाव है
    राहों में अनजान
    चढ़ाव-ढलाव है
आहट कर-कर जाएँगी
प्रतिध्वनियों- सी आएँगी
मुझको सीध बताएँगी
        तुम न भले ही साथ चलो
सुधियाँ साथ निभाएँगी
        थकी अगर...

    पाप-पुण्य की
    परिभाषा से दूर हैं
    बंदी सुख की
    अभिलाषा से दूर हँ
सावन- सी बदराएँगी
रिमझिम कर बतियाएँगी
फ़ूलों-सी महकाएँगी
    तुम न भले साथ चलो
सुधियाँ साथ निभाएँगी
    थकी अगर
    रुक जाएँगी
दूरी भर-भर आएँगी
मुझको छोड़ न पाएँगी
तुम न भले ही साथ चलो
सुधियाँ साथ निभाएँगी