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सुधि करो प्राण! छू-छूकर मेरा मृदु तन शीतल चन्द्रोपम / प्रेम नारायण 'पंकिल'


सुधि करो प्राण! छू-छूकर मेरा मृदु तन शीतल चन्द्रोपम।
तुम सान्द्रानन्दामृत रस-सागर में बह जाते थे प्रियतम!
थी गाढ़ाश्लेषोन्नमिताचिबुक चुम्बिता अंक में लज्जित मुख।
कहते “तव रम्योदिता माधुरी ही है मेरा जीवन-सुख”।
मेरे नीलांचल-खेलन से धन्यातिधन्य जो बहा पवन।
उससे कृतकृत्य हुये, प्रियतम! योगीन्द्र सुदुर्गम मधुसूदन!
उस स्मृति को लौटाये कैसे बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥127॥