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सुनना सजनी / कुमार रवींद्र

सुनना सजनी !
आज याद से
बटन टाँक देना कमीज़ में

अभी नहीं
यह तो बेला है देहराग की
कल ही तो सँग हमने जी है
सुबह फाग की

आज शाम को
याद रहे, हाँ
खाने चलना है 'लज़ीज़' में

यह जो बटन रात कल टूटा
हमें बताता
सिर्फ़ नहीं है
देह-नेह का अपना नाता

दिन अपने भी
बीतेंगे, हाँ
कभी रीझ में- कभी खीझ में

बच्चे होंगे
झंझट होंगे दुनिया-भर के
भीतर के सुख
दुख भी होंगे कुछ बाहर के

पूरा सुख
हाँ, कब मिलता है
इस दुनिया में किसी चीज़ से