Last modified on 18 नवम्बर 2008, at 01:51

सुनसान शहर / विजयदेव नारायण साही

मैं बरसों इस नगर की सड़कों पर आवारा फिरा हूँ
वहाँ भी जहाँ
शीशे की तरह
सन्नाटा चटकता है
और आसमान से मरी हुई बत्तखें गिरती हैं ।