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सुनि लऽ अरजिया हमार / रूपनरायन त्रिपाठी

हथवा मा फूल, नयनवा मा विनती,
सुनि लऽ अरजिया हमार हो गंगा जी।

देहियां कै दियना, परनवां कै बाती
झिलमिल-झिलमिल बरै सारी राती।
तबहूं न कटै अन्हियार हो गंगाजी।

नगर पराया डगर अनजानी
मनवां मा अगिनि, नयनवा मा पानी।
कब मिली अचरा तोहार, हो गंगा जी।

केहू नाही, केहुके विपतिया कै साथी
दिनवां कै साथी न, रतिया कै साथी।
सुनै केहु न केहु क गुहार, हो गंगा जी।

काउ कही गुलरी क फूल भये सुखवा
मनई न बूझै, मनई क दुखवा।
छन-छन धोखवा कै मार, हो गंगा जी।

सीत-घाम बरखा में बरहो महिनवां
राति-दिन एक करै खुनवां पसिनवां
तबौ रहै देहियां उघार, हो गंगा जी।

पिठिया पै बोझ लिहे, पेटवा मां भुखिया
दिन राति रोटी बदे, जूझा करै दुखिया।
तबहूं न मिलत अहार, हो गंगा जी।

पियरी चढ़ावै तोहइ, गउवां कै गोरिया
छीछिल पनियां मा खेलै छपकोरिया।
धरती कऽ राज कुमार, हो गंगा जी।

जाने कब गउवां क दिनवां बहुरिहैं।
कब मिली एनका अहार, हो गंगा जी।