मंत्रियों! मुसकान से या शान से शासन न बदला
खद्दरी यश-गान से खलिहान में आयी न कमला
पंचवर्षी योजना भी हो रही है आज विफला
खेत के हर बीज से है रोगिनी का हाथ निकला
माननीयो! कागजी फरमान से सूरज न निकला
आबनूसी रात का फैला हुआ काजल न पिघला
वोट लेकर चोट करने से हुआ है देश दुबला
हाय तुमने आदमी का शीष कुचला वेश कुचला
शूरमाओ! पालने में पूतना के अब न झूलो
आदमी की खाल ओढ़े आदमी को अब न भूलो
शांति के सम्राट मेरे आक्षितिज आलोक उगलो
रचनाकाल: ०९-११-१९५३