Last modified on 6 सितम्बर 2016, at 05:10

सुनो / निधि सक्सेना

तुम्हारे मणि माणक से अक्षर
उजाले की डोरियों में गूँथ कर
अपने इर्द गिर्द लपेट लिये हैं...

कि जब चाहतें बासी होंगी
इन्ही स्वर कम्पनों का स्पर्श
छंदयुक्त रखेगा मुझे...