और आज भी तुम लौट आए
पर तुम्हारी चाल से लग रहा था जैसे तुम
उदास और थके क्षणों को पाँवों से रौंद रहे हो
यह आज ही नहीं हुआ है
कल भी हुआ है
परसों भी हुआ है
और होगा-- कल भी, परसों भी, और....
तुम आज भी मुस्करा रहे हो
लगता है जैसे व्यवस्था के पसरे अन्धेरे से
तनिक भी नहीं घबरा रहे हो
सुनो अभिमन्यु !
इस व्यवस्था का चक्रव्यूह बहुत विकराल है
और तुम्हारे पास लड़ने को न कोई औजार है, न हथियार है
और लड़ोगे भी कैसे अभिमन्यु ?
फटे हुए कोट, घिसे हुए जूते,
सम्बन्धियों के व्यंग्य, मित्रों के उपहासों
के बीच-- लड़ोगे भी कैसे अभिमन्यु ?
फिर भी लड़ रहे हो तुम पेट की लड़ाई
पेट आज जिसका अर्थ विश्व हो गया है
विश्व, जो चन्द पेटों में ही स्थापित हो रहा है
पेटों में ही उद्योग स्थापित हो रहे हैं
पेटों में ही श्रमिक जी रहे हैं
तुम समय के ऎसे गर्भ में जी रहे हो, मनु
जहाँ हर आदमी एक दूसरे को खा रहा है
मौक़ा मिलते ही हड्डियाँ तक चबा रहा है
सुनो अभिमन्यु, सुनो !
इस भयानक पेट को चीरना ही होगा
मुक्ति हमारा सबसे बड़ा पर्व है, मनु !
अभिमन्यु ! यह 'तुम' नहीं, 'मैं' हूँ
जो कह रहा हूँ, सुन रहा हूँ, देख रहा हूँ,
यह 'मैं' नहीं 'तुम' हो
जो कह रहे हो, देख रहे हो, सुन रहे हो !