सुनो तो रे कवि
करो ज़रा याद
कब रोए थे तुम
कितना हुआ अर्सा
सचमुच
कब रोए थे!
लिख डाली हालांकि
इतनी कविताएँ
ताज्जुब
कहलाते कवि!
सुनो तो रे कवि
करो ज़रा याद
कब रोए थे तुम
कितना हुआ अर्सा
सचमुच
कब रोए थे!
लिख डाली हालांकि
इतनी कविताएँ
ताज्जुब
कहलाते कवि!