खड़े-खड़े हरदम रहते हो,
कुछ ना कहते, चुप रहते हो!
नीम, आम, जामुन, बहेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!
कभी बैठकर हमसे बोलो,
दही-जलेबी खा ख़ुश हो लो!
ललचाए से खड़े भेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!
मिट्टी से तुम जल लेते हो,
मीठे-मीठे फल देते हो!
खाएँ बच्चे औ' अधेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!
करो सुखी जीवन की राहें,
जो भी तुम्हें काटना चाहें;
हम उनको देंगे खदेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!