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सुनो मलाला / अर्चना अर्चन

सुनो मलाला
कुछ बताना है तुम्हें
एक हकीकत और एक कड़वा सच

जताना है तुम्हें
कि तुम अकेली नहीं हो
बहादुर! जुझारू! जांबाज!
तुम्हारी सरीखी ही हैं तमाम
जिधर भी नजर दौड़ाओ.।
मिल जायेंगी 'मलाला'

यकीन जानो
तुम्हें ये बताने के पीछे इरादा
तुम्हें कम आंकने का बिल्कुल नहीं
ना ही
तुम्हारे साहस पर
कोई सवाल ही है।
पर सच तो सच ही है ना?

बेशक
तुमने तालिबान के खिलाफ
आवाज उठाई
दिखाया उसे ठेंगा
पर तुम्हें शायद नहीं पता
न जाने कितनी स्त्रियाँ
कमोवेश तुम्हारे जैसी ही
जूझ रही हैं हर रोज
अपने जीवन में 'तालिबान' से

तुम सुन रही हो ना मलाला?
कि वह सारी भी
कर रही हैं सामना
अपने आस-पास मौजूद दहशतों का
जो हर पल सहमा जाती है उन्हें
हर रोज
उनकी राहों में बिछाई जाती हैं
तमाम बारूदी सुरंगें
हर घड़ी तनी रहती हैं उनपर
नियमों प्रतिबंधों अपेक्षाओं की बंदूकें
ये औरतें भी तो जूझ रही हैं ना
कट्टरता से
रूढ़ियों से गंदी मानसिकता से
और कभी-कभी
जबरन थोपी गई जिम्मेदारियों से भी

कभी तेजाबी हमला झेलती
तो कभी अजन्मी बेटी के हक के लिये लड़ती
कभी अपने आत्मसम्मान के लिये
तो कभी
अपनी देह की रक्षा के लिये संघर्ष करती
ये सब भी तुम्हारी तरह ही
चाह रही हैं
'एक बेहतर कल'
अपने-अपने दायरों में

क्या तुम ये जानती हो मलाला
कि इनमें से कई
खो बैठती हैं इस जंग में जिंदगी अपनी
गुमनाम सी.।
न तो उन्हें तमगा हासिल होता है
न मिलता है कोई सम्मान
पर यकीन मानो इससे कम नहीं होती
सार्थकता उनकी
या उनके हिस्से की लड़ाई की

मलाला
बेशक तुम मिसाल हो जमाने के लिये
पर मशालें और भी हैं जो जल रही हैं
रौशन करने को जहाँ
यकीनन
तुम अकेली नहीं हो