राग हमीर, तीन ताल
सुन्दर श्यामा-श्याम सलौने।
ऐसे प्रीति-पगे नवदम्पति भये, न आगे होने॥
चढ़े रहहिं रसिकन के चित पै, मुनि मन कीन्हें भौने<ref>भवन, निवास स्थान</ref>।
जिन निरखे तिनही पै मानहुँ किये अपूरव टौने॥1॥
स्नेह-सिंगार रूप धरि सोहें, मनहुँ कुंज के कौने।
निरखि-निरखि सखि चकि-चकि वारहिं प्रानहि राई-लौने॥2॥
अरस-परस को दरस करत हूँ रहत तरस उर जौने<ref>जिनके</ref>।
तिन के भूरि भाग्य की महिमा कहो, कहै, कवि कौने॥3॥
रस की तरस सरस हो मोरी बसहिं जो ते मन-भौने।
नतरु वयस विलखत ही बीतहि, उड़ि जइहैं असु-पौने॥4॥
शब्दार्थ
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