उपेक्षा पौरुष की
बहिष्कार ख़ुशुबू का
नकार झुकने से -
कर सकती हो
यह सब तुम
तितली..!
कोई वरदान नहीं
फूल के पास
कि वह झेल जाए
तुम्हारा विरोध..
प्यार तो
उसका भी जाएगा..
फिर तुम्हारा
तितली होना
किसको भाएगा...
कितनी आसानी से
कह दिया तुमने
कि आज़ादी
मेरा भी हक़ है...
क्या इस बग़ीचे में भी
होती है बैठकें
तितली आन्दोलन की..?
ममता के
इन्द्रधनुष पर
चढ़ आया है कोई रंग
विमर्श का शायद...
तर्क के रंगरेज ने
ख़ूब रँगा है काला
गुलाबी था जो
दुपट्टा तुम्हारा...
करुणा का करके क़त्ल
हृदय जा बैठा है
बुद्धि के द्वार..
तितली..!
तुम क़ैद हो गई लगती हो
तितलियों के ही
किसी बाड़े में...
बाड़ा –
जो चला रहा है
अपना अलग ही
नक्सली आन्दोलन...
एक नया ग़दर
एक नया विप्लव
एक नई सत्ता का
आसुरी स्वप्न...
इस नई चुनौती का
अंजाम सोचा है
तुमने तितली..?
एक आरोपित बन्ध्याकरण को
झेल सकोगी तुम..?
तितली...!