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सुबह-सुबह साँसों में / लाल्टू

1.

अलसुबह वह आदमी एक शरीर लेकर निकलता है ।
वज़न के साथ घुटने ढोते हैं कई और जीवन । सुबह वह वरजिश करता है कि दिनभर ढो सके एकाधिक प्राण । पुख़्ता करता है तन-मन । इस कोशिश में तेज़ी से टहलता है । कभी थोड़ी दौड़ भी । दौड़ते हुए बड़बड़ाता है :

कसरत करो तो मन की भी करो तन की तरह
मन की भी होतीं शिराएँ, मज्जाएँ, हड्डियाँ, तन की तरह ।
मन की कसरत न होने पर सूख जाता है मन ।
अक्सर दुबारा गीले नहीं हो पाते सूखे मन ।

शरीर चलता है मैदान के एक कोने से दूसरे कोने तक । शरीर चलता है ब्रह्माण्ड की शुरुआत तक ।

2.

मसलन याद आता है अभी सड़क पर चलते टूटे नल से पिया पानी । पहाड़ी शहर की गली में चट्टानों पर कोठरी की खिड़की के हाथ हिलाती बच्ची ।
लोक अचानक ही जीवन से गायब होते हैं, हालाँकि हर रोज़ वे हमारे आस-पास ही दिखते हैं ।

3.

अंकल को देखकर वह अन्ना के पीछे छिप जाती है । अंकल कहता है -- मैं तुम्हें देख रहा हूँ । वह छिपने-दिखने का खेल गढ़ती है । अंकल हँसते-हँसते दो क़दम दाँए-बाँए होता है। वह फूलों की झाड़ी के पीछे छिप जाती है । फूल उसे छिपाकर ज़ोर से हँसते हैं ।

उसका खेल, फूलों का हँसना, अंकल की सुबह ।

4.

मैदान में कुत्तों ने डेरा जमा रखा है । थोड़ी दूर और छोटे मैदान में पाँच पिल्ले खेल रहे हैं । आदमी को पिल्लों से प्यार है । वह डरता है कि पास जाने पर पिल्लों की माँ उस पर हमला कर देगी । सोचता है कुत्तों के बारे में शिकायत करे । फिर सोचता है कि आख़िर कुत्ते कहाँ जाएँ ?
इन दिनों कुत्तों की आवाज़ें सिर्फ़ रात को सुनाई देती हैं । बेजान आवाज़ें ही दिन की आवाज़ें हैं ।

सुबह-सुबह साँसों में पिल्लों के खेल, फूलों की हँसी ।