आँख मलते हुए जागती है सुबह
और फिर रात दिन भागती है सुबह
सूर्य के ताप को जेब में डाल कर
सात घोंडों का रथ हांकती है सुबह
रात सोई नहीं नींद आई नहीं
सारे सपनों का सच जानती है सुबह
बाघ की बतकही जुगनुओं की चमक
मर्म इतना कहाँ आकती है सुबह
आहटें शाम के रात की दस्तकें
गुड़मुड़ी दोपहर लांघती है सुबह