खिले हुए उड़हूल के फूलों पर
इसी आसमान के नीचे
ठहरे हुए हैं ओस के कतरे
ये तुम्हें नहीं दिखेंगे
जूतों में ठहरे
श्रम के घण्टे
जहाँ पाँव उतरा है
खदानों से पहले।
सीली हुई किवाड़ों में
जैसे उतरे हैं
कुकुरमुत्ते।
रात के बाद रक्तिम
हुआ है क्षितिज
तुम्हारी आँख खुलने से
बहुत पहले
जलकुम्भियों में हरियाली
का उत्सव है।
हमारे घर सोने के लिए
ही नहीं
तुम्हारी मर्जी के ख़िलाफ़
उन्हें हमने प्यार के लिए
भी इस्तेमाल किया
सिलवटें ठीक करने के बाद
हमने बखिए की तरह
उधेड़ी हैं दीवारें।
जब हम उतरने वाले हैं
खदान के अँधेरे में
एक मैदान खुला होगा वहाँ
कोलाहल के काले पंखों
और छोटे सिर वाले परिन्दे
ढूँढने आए होंगे आबोदाना
पीली-पीली घासों में
रोज़ से अधिक डरे हुए
मनुष्य जैसे
सुबह सबसे पहले
वहीं उगाता है सूरज
धूएँ की पतली लकीरों में।