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सुबह का भुला / पद्मजा बाजपेयी

दिशाहीन मेरे देश के युवाओं,
तुमसे एक बात कहनी है,
यूँ छुप-छुप कर जीना,
कोई जीना नहीं होता,
अपनों से दूर, परायों में रहना,
कोई रहना नहीं होता,
चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार,
अपराध कहलाते है,
इनसे पेट भरना,
भरना नहीं होता,
दूसरों को रुलाकर हँसना,
हँसना नहीं कहलाता,
माना कि सही राह पर हजार काँटे हैं,
कई उतार, चढ़ाव और घाटे हैं,
भर पेट रोटी नहीं मिलती,
तन ढँकने को बहू-बेटियाँ तरसती,
खुले आसमान के नीचे,
किस तरह से राते गुजारती।
मांगने पर काम नहीं मिलता,
काम मिलने पर दाम नहीं मिलता,
इधर कुआँ, उधर खाई है,
कहाँ जाए उनकी जान पर बन आई है,
हिम्मत से काम लो, कर्म ही भाग्य बनाता है,
रात के बाद अवश्य प्रभात आता है,
तुम लौट आओ,
सुबह का भुला,
शाम को भी लौट आए तो भुला नहीं कहलाता है।