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सुबह कितनी सुखद लगती / मधुसूदन साहा

भोर की किरणे सुहानी,
धूप की चढ़ती रवानी,
रोज नदियों के किनारे
पेड़ की छिड़ती कहानी।

नीम, जामुन, आम, कटहल,
हर किसी पर रोज हलचल,
क्या पता क्या बात करते
पंछियों का बैठकर दल?

सुबह सरिता के किनारे,
मोहीत मन को नजारे,
ओस दुबों पर चमकती
ज्यों जड़े अनगिन सितारे।

सुबह कितनी सुखद लगती,
साथियों की मदद लगती,
चूमती जब फूल तितली
पंखुरी भी शहद लगती।

सैर का आनंद ले लो,
स्वच्छता सानन्द ले लो,
रोज जाकर बाग में तुम
फूल का मकरंद ले लो।