सुबह बनने चली दोपहर
फिर भी सोया पड़ा है शहर
प्यार के गीत के बोल तक
भूलते जा रहे हैं अधर
हैं पराए-पराए-से दिल
अजनबी-अजनबी-सी नज़र
भीड़ ही भीड़ है हर तरफ़
फिर भी तन्हा हैं हम किस क़दर
रौशनी तो बहुत तेज़ है
खो गई है कहीं पर डगर
सुबह बनने चली दोपहर
फिर भी सोया पड़ा है शहर
प्यार के गीत के बोल तक
भूलते जा रहे हैं अधर
हैं पराए-पराए-से दिल
अजनबी-अजनबी-सी नज़र
भीड़ ही भीड़ है हर तरफ़
फिर भी तन्हा हैं हम किस क़दर
रौशनी तो बहुत तेज़ है
खो गई है कहीं पर डगर