काळ अघोरी नहीं पचै लो
दूगड़ सोहनलाल।
सुसै जको तो पाणी, आ तो
दुळी घीव री पारी,
हुई चीकणी भौम, गिगन में
गई मैक परवारी,
जबर हुयो दातार, दळदरी
कळजुग हुग्यो न्याल।
कथनी रै कंठां में बांध्यो
सत करणी रो हीरो,
दीन दुख्यां रो मोबी, जाणै
मायड़ जायो बीरो,
दया मया री मूरत पाछी-
आछी गयो उजाळ।
गांव गळी घर फळसां छाई
जस री हरियल बेल,
कठै मौत रो बूतो समझै
सत पुरषां रा खेल,
याद घणूं आसी बो करतो
मिनखां री रिछापाळ ।