Last modified on 28 जुलाई 2009, at 03:51

सुरझी नहिं केतो उपाइ कियौ / ठाकुर

सुरझी नहिं केतो उपाइ कियौ, उरझी हुती घूंघट खोलन पै।
अधरान पै नेक खगी ही हुती, अटकी हुती माधुरी बोलन पै॥
कवि 'ठाकुर लोचन नासिका पै, मंडराइ रही हुती डोलन पै।
ठहरै नहिं डीठि, फिरै ठठकी, इन गोरे कपोलन गोलन पै॥