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सुर्खियाँ निहार लो / महेन्द्र भटनागर

नये विचार लो !

समाज की गिरी दशा सुधार लो,

सुधार लो !

रुका प्रवाह फिर बहे,

सप्राण गीति-स्वर कहे,

हृदय अपार स्नेह-धन

भरे उठें असंख्य जन,

प्रभात को धरा जगो पुकार लो,

पुकार लो !

वतन सुसंगठित रहे,

न एक जन दमित रहे,

न भूख-प्यास शेष हो,

बना नवीन वेश हो,

समय बहाल, सुर्खियाँ निहार लो,

निहार लो !

विभोर हर्ष-धार में,

सफ़ेद लाल प्यार में,

बहो, बहो, बहो, बहो !

बनी नयी कुटीर है, विहार लो,

विहार लो !

1950