सुविधा के मोह में
बहक गए पाँव
मेरा छूट गया गाँव
गोबर से लिपा-पुता
रहता था आँगन
खुशियाँ ही खुशियाँ
तब लाता था सावन
जीवन अब अस्त-व्यस्त
सर पर नहीं छाँव
शहर सारा बेगाना
सर पर नहीं साया
सुख में जो साथ रहा
दुखः में ना आया
ना ही बचा ठौर कोई
ना ही कोई ठाँव
रोजी के लाले हैं
पाँवों में छाले
सुलझाए सुलझे ना
उलझन के जाले
जीवन में लगने लगे
रोज़ नए दाँव
सुविधा के मोह में
बहक गए पाँव
मेरा छूट गया गाँव