राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बन्नी सुहाग मांगन चाली अपनी दादी रे दरबार,
ताई रे दरबार, मम्मी रे दरबार
दादी दे ओ जी सुहाग, बालक बनड़ी ने सुहाग,
पीहर प्यारी ने सुहाग, बालक बनड़ी ने सुहाग,
ऐ मां मै क्या जाणूं कामण, ऐसा घुल लाग्या,
कामण लाग्या हो राइवर, कामण लाग्या हो।
सूरजमल, इन्दली बिन्दली से घुल लाग्या,
काजल टीकी से घुल लाग्या, नैन मजीठी,
से घुल लाग्या, मेहंदी से घुल लाग्या।
हे मां मैं क्या जाणूं कामण ऐसा घुल लाग्या।