राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सुहाग राज बाबाजी ल्याया, पहलो सुहाग मारुजी रो होइयो।
दूजो सिरदार बन्नी रो होय, सुहाग राज बिड़ला जी ल्याया।
अगनो सुहाग म्हारी मायां काकी रो होइयो
चौथो सुहाग म्हारी भाभी रो होइयो
सुहाग राज बाबाजी ल्याया
पांचवो सुहाग म्हारी भूवा रो होइयो तो
छठो सुहाग म्हारी बहना रो होइयो तो
सातवों सुहाग बन्नी रो होय।
सुहाग राज बाबाजी ल्याया।