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सूखा / विनय राय ‘बबुरंग’

अइसन सूखा पड़ल कि सुखाइल हिया
बावग केतनो हम कइलीं ना जामल बिया
जेवन जामल ऊ उकठे सुरू हो गइल
लागत अइसन बा रहिहें कुंवारी धिया।।

धान सूखा से बहुते मुआर हो गइल
मत समझी कि टूअर दुआर हो गइल
जे भी आवे करीं ओके स्वागत-नमन
भले आजु खाली कोठार हो गइल।।

कइसो इज्जत के आपन बचइबे करब
असों बिटिया बियहवा के टरबे करब
जेवन सूखा से कसि के पिटाई हो गइल
जिनिगी पुअरा भइल ओके ढोइबे करब।।

अइसन लागल बा आगी बुतात नइखे
आगे खाइब का तनिको बुझात नइखे
काल्हे सोचल सपनवां पर पानी फिरल
आखिर केने हम जाईं लखात नइखे।।
ए निरासा में आसा जगावे होई
अब असरा के बियवा बोआवे होई
हर गली गांव जन-जन में फइलल जहर
ई जहर आजु अमृत बनावे होई।।

ई खेतिये त जिनिगी के रखवार ह
ई खेतिये त जिनिगी के पतवार ह
ई खेतिये त हरपल ई धड़कन चले
ई खेतिये त दुनिया क आधार ह।।

उनका मरजी से जिनिगी क पहिया चले
उनका मरजी से नदिया में नइया चले
जब पल में सुदामा क घर बन गइल
उनका मरजी से सुख-दुख में दुनिया चले।।