बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
सूजैं इन आँखन अलबेली
जग मैं रजऊ अकेली।
भरकें मूठ गुलाल, धन्न वे,
जिनके ऊपर मेली।
भागवान जिनने पिचकारी,
रजऊ के ऊपर ठेली।
ई मइनाँ की आवन हम पै,
मिली, मसा के झेली।
अपकी बेराँ उननें ईसुर
फाग सासरें खेली।
सूजैं इन आँखन अलबेली
जग मैं रजऊ अकेली।
भरकें मूठ गुलाल, धन्न वे,
जिनके ऊपर मेली।
भागवान जिनने पिचकारी,
रजऊ के ऊपर ठेली।
ई मइनाँ की आवन हम पै,
मिली, मसा के झेली।
अपकी बेराँ उननें ईसुर
फाग सासरें खेली।