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सूरज-२ / ओम पुरोहित ‘कागद’

शीतल रेत में
बडे़ सवेरे
सूरज ऊगता है
पूर्व से
मानो
रेत से
बाहर निकलता है
कोई खरगोश
मनुष्यों का भय भगाता !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"