शीतल रेत में
बडे़ सवेरे
सूरज ऊगता है
पूर्व से
मानो
रेत से
बाहर निकलता है
कोई खरगोश
मनुष्यों का भय भगाता !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"
शीतल रेत में
बडे़ सवेरे
सूरज ऊगता है
पूर्व से
मानो
रेत से
बाहर निकलता है
कोई खरगोश
मनुष्यों का भय भगाता !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"