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सूरज-५ / ओम पुरोहित ‘कागद’

बरसात के लिए
धरती पर
हो रहे थे हवन
मिल रही थी अहूतियां
सूरज को
देवता होने के कारण
परन्तु
शर्मा रहा था सूरज
दिए बिना
लेने से !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"