सारे रँग आते हैं सूरज से, मगर उसका नहीं है
कोई एक रँग, क्योंकि सारे रँग समाए हैं उसके भीतर ।
और पूरी पृथ्वी है एक कविता की तरह
जबकि ऊपर सूरज प्रतीक है कलाकार का ।
जो कोई भी रँगना चाहता है बहुरँगी दुनिया को
उसे कभी मत देखने दो सीधे सूरज की तरफ़
वरना वह गवाँ बैठेगा अपनी देखी हुई चीज़ों की स्मृति
केवल जलते हुए आँसू रह जाएँगे उसकी आँखों में ।
उसे घुटनों के बल बैठकर झुकाने दो अपना चेहरा घास की ओर,
उसे देखने दो ज़मीन से परावर्तित प्रकाश को ।
वहाँ उसे मिलेंगी वे सारी चीज़ें जो हम गँवा चुके हैं :
तारे और गुलाब, शाम और सुबहें तमाम ।
वारसा, 1948
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल