नित्य सुबह पूरब में आकर सूरज एक उगाता कौन।
आसमान में इतना सारा लाल रंग बिखराता कौन।
बैलों सँग हल माची लेकर चल देते हैं सुबह किसान,
उन्हें जगाने की ख़ातिर फिर चिड़ियों को चहकाता कौन।
किरणों से छू-छू फूलों की, पंखुड़ियों को देता खोल,
पंखुड़ियों की मुस्कानों से भौंरों को ललचाता कौन।
अंधकार की बात भूलना चाह रहे दुनिया के लोग,
उगता सूरज ढलना ही है, इसकी याद दिलाता कौन।
नदिया से सागर, सागर से बादल बन जाता किस भाँति,
बादल बरसा कर धरती की बढ़ती प्यास बुझाता कौन।
आधार छंद-वीर
विधान-31 मात्रा, 16, 15 पर यति, अंत में गाल