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सूरज का टुकड़ा / जगदीश व्योम

वक्त के मछुआरे ने

फेंका था जाल

कैद करने के लिए

`सघन तम' को

जाल के छिद्रों से

फिसल गया `तम'

और

कैद हो गया

सूरज का टुकड़ा

वक्त का मछुआरा

कैद किए फिर रहा है

सूरज के उस टुकड़े को

और

सघनतम होती जा रही है

`तमराशि' घट-घट में

उगानी होगी

नई पौध

सूरज के नए टुकड़ों की

जागृत करनी होगी बोधगम्यता

युग-शिक्षक के अन्तस में

तभी खिलेगी वनराशि

महेकगा वातास

छिटकेंगी ज्ञान रश्मियाँ

मिट जाएँगी

आप ही आप

आपस की दूरियाँ

तो

आओ!

अभी से

हा! अभी से............

इस नए पथ की ओर

कहा भी गया है

जब आँख खुले

तभी होती है भोर!!