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सूरज चाचा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सूरज चाचा कैसे हो,
क्या इन्सानों जैसे हो।
बिना दाम के काम नहीं,
क्या तुम भी उनमें से हो?

बोलो-बोलो क्या लोगे,
बादल कैसे भेजोगे।
चाचा जल बरसाने का,
कितने पैसे तुम लोगे।

पानी नहीं गिराया है,
बूंद-बूंद तरसाया है।
एकटक ऊपर ताक रहे,
बादल को भड़काया है।

चाचा बोले गुस्से में,
अक्ल नहीं बिल्कुल तुम में।
वृक्ष हजारों काट रहे,
पर्यावरण बिगाड़ रहे।

ईंधन खूब जलाया है,
जहर रोज फैलाया है।
धुआं-धुआं अब मौसम है,
गरमी नहीं हुई कम है।

बादल भी कतराते हैं,
नभ में वे डर जाते हैं।
पर्यावरण सुधारोगे,
ढेर-ढेर जल पा लोगे।