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सूर्यनमस्कार / कविता वाचक्नवी

सूर्य-नमस्कार


झिर्रियों की धूप

देती है आभास

बाहर

उग गया है, सूर्य ।

कुछ पल

लुके-छिपे, बंद झरोखों-दरारों से

झाँक लेगा

किसी एक कोने, नुक्कड़, किनारे ।


अंधेरी कोठरियों के वासी

रहेंगे ठिठुरते ही

काँपते ही

तड़फड़ाते ही ।


हड्डियों तक

बर्फ़ जमे लोग

कैसे करें

सूर्य-नमस्कार ?