सूरज पूरब से नहीं निकला आज
न पश्चिम से
सूरज निकला आज
एक साहित्यकार की कामान्ध कलम से
कुछ अलसाया-सा
कुछ भरमाया-सा
अपने स्खलित वीर्य को
उषा की अधखुली जंघाओं पर बिखेरता
देखते ही देखते
केबल टी०वी० के
नेटवर्क में उलझ गया
सूरज पूरब से नहीं निकला आज
न पश्चिम से
सूरज निकला आज
एक साहित्यकार की कामान्ध कलम से
कुछ अलसाया-सा
कुछ भरमाया-सा
अपने स्खलित वीर्य को
उषा की अधखुली जंघाओं पर बिखेरता
देखते ही देखते
केबल टी०वी० के
नेटवर्क में उलझ गया