सृजन का दर्द होता है भारी
कलम कँपकपाती है
मनोबल लड़खड़ाता है
मन छटपटाता है
व्यथा सहनी पड़ती है
सारी की सारी
शब्द न्यास में अक्षर
बिंदु बनता क्षण भर
सदयिों बुनता बुद्धि सपन
तब कर पाता कोई कविकर्म
सारा जग जब सोता लम्बी तानकर
वह जागता हाथ लेखनी पकड़
फिर जग सुख दुःख
का बोध
उसे सताता बनकर भारी शोध
यही कविता की पीड़ा प्रक्रिया है सारी
सृजन का दर्द होता है भारी
अरे, कहो न तुम उसे पागल
मत हँसो कहकहे लगाकर
बहलाता दिल, मनचाहे पुष्प सज़ाकर
लड़ता हर संग्राम वह बेसुध होकर
उसी पुण्य में चालित विश्व सकल
वह पूजक है पूजा उसकी सरस्वती नारी
सृजन का दर्द होता है भारी।