लक्ष्य क्या तेरा यही था?
धरणि तल से धूल उठकर
बन भवन-प्रासाद सुखकर,
देव मंदिर सुरुचि-सज्जित,
दुर्ग दृढ़, उन्नत धराहर,
हो खड़ी कुछ काल फिर से धूलि में मिल जाय।
लक्ष्य क्या तेरा यही था?
स्वर्ग को आदर्श रखकर
तप करे पृथ्वी कठिनतर
उठे तिल-तिल यत्न कर ध्रुव
क्रम चले युग-युग निरंतर
निकट जाकर स्वर्ग के, पर, नरक में गिर जाय।
लक्ष्य क्या तेरा यही था?
पशु खड़ा हो दो पगों पर
ले मनुज का नाम सुन्दर
और अविरत साधना से
देव बन विचरे धरा पर,
किंतु सहसा देवता से पशु पुनः बन जाय।