रात-दिन चोर मिलते हैं
विश्वास को सेंध लगाते हैं
और किसी अकेले मोड़ पर
रौब गाँठना चाहते हैं।
दूसरे मोड़ पर वे नाचते हैं।
अगर फिर भी कामयाब नहीं होते
अगले मोड़ पर भिखारी बनकर
विश्वास की भीख माँगते हैं।
और
उससे अगले मोड़ पर
वे हँसते हैं
इन विश्वास गँवाने वालों पर।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल