Last modified on 30 मार्च 2017, at 10:28

सेक्स एक भूख है / कर्मानंद आर्य

पहले मेरी बहन गई
फिर मेरे दोस्त की
अब अमूमन हर किसी की बहन जाती है पार्क

वे तंग जगहें हैं
जहाँ नहीं होता पार्क और फूल
जहाँ नहीं होती नदियाँ

विकृतियों का जमघट होता है
अपने ही करते हैं व्यभिचार
मेरी बेटी बताती है
‘एक कहानी उसको भी पता है’

मैं पूछते हुए डरता हूँ
अपनी ही बेटी से
बंद कमरे कैसे सड़ जाते हैं
बंद गली कैसे ख़त्म हो जाती है


पार्कों का होना अच्छा है
पहले मेरी बहन गई
फिर मेरे दोस्त की
अब अमूमन हर किसी की बहन जाती है पार्क