सेल्समैन / नरेश अग्रवाल

वह कितना प्रभावहीन था
जब आया था मेरे पास
 
- देखते - देखते
तन गया था उसका पूरा शरीर
एक योद्धा की तरह
उसने रख दी थी नजरे मेरे चेहरे पर
मानो वह मेरा ही मुखौटा हो

तर्कपूर्ण बातों से
कसता जा रहा था मुझे
एक शिकंजे में
वह वही बोल रहा था
जो मैं सुनना चाहता था
वह वही समझा रहा था
जो मैं समझना चाहता था

हाव-भाव सभी सतर्क थे
तत्पर थे पूरा करने के लिए
जो वह करना चाहता था
दौड़ रहा था आत्मविश्वास
उसके रग-रग में
जितने पैदा कर दिया था

मुझमें ऐसा विश्वास
मानो वह मेरा बहुत
पुराना मित्र हो

उसके कपड़े-जूते चेहरे सब
चमकने लगे थे एक तेज से
जिनके आगे मैं झुकता
चला जा रहा था
जबरदस्ती नहीं खुशी से

अंत में वह हंसा
मानो जीत लिया हो उसने
जो वह जीतना चाहता था

वह एक अच्छा
सेल्समैन था ।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.