हाय! बाजू की बजलो ने जाय।
कहबा लय हमहू छी गृह-निर्माता,
ठीक रहय बाध भरिक खेसरा ओ खाता
ढकने फिरैछी नगर भरि तैयो
दस कट्ठा प्रति दिन बोहाय।
हमरो लगै अछि सोहनगर गामे,
हमहू पुजाबी जा पुरखेक नामे,
अपनेसँ अप्पन प्रशंसा कै’छी
तैयो ने मनुआँ अघाय।
हमरे बनौने बनय क्यो राजा,
हमरे बजौने बजै’ अछि बाजा,
खाजा आ लड्डू परसि दै’ छी अनका
ताहीसँ अतमा जुड़ाय।
उज्ज्वल रहल सभ दिन इतिहासे,
आइ भने एक साँझ होइत हो उपासे,
आशामे पेट छुटल भऽ गेल बखारी
भरितो सतत खलिआय।
गुरुए तँ कहबै छी हम संसारक,
आइ भने खापरि बनी कंसारक,
तैयो तँ लाड़निकेर मुँह झरकयबनि
रखबनि कतेकेँ उलाय।
हमही ली ठीका परक उपकारक,
अपना लय रखने छी सम्प्रदान कारक,
दा धातुकेर हम प्रयोगे ने सिखलहुँ
तैयो चली उधिआय।
दलित-पतितकेर हमही छी त्राता,
मन्त्रो जपै’ छी ‘जय भारत माता’,
सेवाकेर नामपर मेवा पबै’ छी
सेहो तँ बहुजन हिताय।
छत्तिस गजकेर रखनेछी अँतरी,
आँकि सकय नहि क्यो जन भितरी,
दुनिआसँ माङि चाङि कोठी भरै’ छी,
रखितो छी तकरा जोगाय।
हम की छी, से बुझथि नहि देवो,
पारो उतरि जाइ, दी नहि खेबो,
हमरे लय अगिला माङी सुरक्षित,
नहि तँ दी नावो डुबाय।