(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा) सेवा करो जगतकी तनसे, मनसे हरिके हो जाओ। शुद्ध बुद्धिसे तत्वनिष्ठ हो, मुक्त-अवस्था को पाओ॥