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सोच / राजू सारसर ‘राज’
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राजू सारसर ‘राज’
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म्हारै पांती रा सुपना
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म्हारै सारू
लोग कांई
समझै, कांई सोचै
नीं जाणनौं चावूं।
म्हूं जाणूं
फगत जिण रो खावूं
उण रा गीत गावूं।