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सोनाली धूप / योगेन्द्र दत्त शर्मा

नीम की निबोली बौराई,
सोनाली धूप रंग लाई!

सूख गया कंठ बहुत प्यास से
कुम्हलाए पेड़ हैं उदास-से,
पशु-पक्षी तंग हुए धूप से,
पानी तक मिला नहीं कूप से।
गरमी से धरती अकुलाई!

लूओं का यहाँ-वहाँ शोर है
उमस-तपस, गरमी घनघोर है,
सुबह-शाम भी हवा नहीं चली
दोपहरी तेज आँच-सी जली।
पंखे से गरम हवा आई!

कपड़े तन को नहीं सुहा रहे
गरमी से सब झुलसे जा रहे,
बहुत दूर ठंडक का गाँव है
कहीं नहीं थोड़ी भी छाँव है।
सूरज ने आग-सी लगाई!